नई दिल्ली :
बिजली कंपनियों के अकाउंट का सीएजी ऑडिट कराने की मांग करते हुए आरडब्लूए प्रतिनिधियों ने पीएम को पिटीशन भेजी है। जिसमें कहा गया है कि बिना अकाउंट की सही से जांच किए बिजली के रेट तय करना दिल्ली वालों के साथ अन्याय है।
ईस्ट दिल्ली आरडब्लूए जॉइंट फ्रंट के बी.एस. वोहरा ने कहा कि दिल्ली सरकार कह चुकी है हम सीएजी ऑडिट के लिए तैयार है। हाईकोर्ट में करीब छह महीने पहले कहा गया था कि सीएजी ऑडिट कराया जाएगा। लेकिन अभी तक भी कुछ नहीं हुआ है। बिजली कंपनियों की बैलेंस शीट साफ बताती हैं कि वे फायदे में हैं। बावजूद इसके डीईआरसी ने उन्हें घाटे में मानते हुए बिजली के रेट बढ़ा दिए। बिजली कंपनियों के एकाधिकार और मनमानी की वजह से लोगों को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है।
एक्टिविस्ट एस.के. माहेश्वरी ने कहा कि कैबिनेट ने
पिछले साल दिसंबर में बीएसईएस को 500 करोड़ का बेलआउट पैकेज देने पर सहमति
जताई थी। साथ ही जब से बिजली निजी हाथों में गई है तब से अब तक कंपनियों के
अकाउंट की सीएजी से ऑडिट कराने का भी फैसला लिया था। बेलआउट तो दे दिया
गया लेकिन ऑडिट अभी तक नहीं किया गया।
ऊर्जा संगठन के सौरभ गांधी ने कहा कि सरकार ने विधानसभा में सीएजी ऑडिट कराने का प्रस्ताव पास तो कर दिया पर इसे लागू नहीं कर रही । जब तक ऑडिट नहीं हो जाता तब तक कैसे साफ होगा कि कंपनियां लॉस में हैं या प्रॉफिट में। कंपनियां पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन को अलग आंकड़े दे रही हैं और डीईआरसी को अलग। एक ही कंपनी के अकाउंट में करीब 2000 करोड़ की हेराफेरी है। ऐसे में जब तक सीएजी ऑडिट नहीं हो जाता कैसे यकीन किया जाए कि जिस अकाउंट को आधार बनाकर दिल्ली की जनता से मोटे बिल वसूले जा रहे हैं वह सही हैं। उन्होंने कहा कि बिजली कंपनियों को आरटीआई के दायरे में लाया जाना चाहिए। जब कंपनियों में 49 पर्सेंट शेयर सरकार का है तो सरकार क्यों आरटीआई से बच रही है।
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