बीस साल पहले भी दिल्ली की सड़कों पर पानी भरता था, आज भी दिल्ली की सड़कों पर पानी भरता है. बीस साल पहले भी दिल्ली की सड़कों पर खड्डे होते थे, आज भी दिल्ली की सड़कों पर खड्डे होते हैं. बीस साल पहले भी दिल्ली मे गर्मियों मे पानी की किल्लत होती थी, आज भी दिल्ली मे गर्मियों मे पानी की किल्लत होती है. बीस साल पहले भी दिल्ली सबसे ज़्यादा पोल्यूटेड थी, आज भी दिल्ली सबसे ज़्यादा पोल्यूटेड हैं. बीस साल पहले भी हम ट्रॅफिक जाम मे फस्ते थे, आज भी हम ट्रॅफिक जाम मे फस्ते है. और सबसे ज़रूरी बात, बीस साल पहले भी हमारी दिल्ली महिलाओं के लिए सुरक्षित नही थी, आज भी हमारी दिल्ली महिलाओं के लिए सुरक्षित नही है.
हालाँकि, इन बीस सालों मे, कई सरकारें बदल गई, कई नेता बदल गए, कई राजनीतिक दल बदल गए, लेकिन जो कुछ बदलना चाहिए था, वो सब कुछ नही बदला. हाँ, एक बदलाव ज़रूर हुआ कि पहले सफाई करमचारिओं की हड़ताल इस तरह नही होती थी, जिस तरह अब होती है. पहले दिल्ली इस तरह कूड़ा घर नही बनती थी, जिस तरह अब एक बड़े कूड़ा घर मे तब्दील हो जाती है. आज भी हमे सड़कों पर एंकरोचमेंट से छुटकारा नही मिला. आज भी दिल्ली की सड़कों पर रैश ड्राइविंग होती है. आज भी रोड रेज़ के किससे सुनने मे आते हैं. आज भी सरकारें, सिर्फ़ टॅक्स वसूली मे विश्वास रखती हैं, और आज भी दिल्ली की आम जनता, बेसिक साहूलतों के लिए तरसती है.
हम यह भी नही भूल सकते कि इन बीस सालों मे दिल्ली मे मेट्रो चल पड़ी, कई नए फ्लाइ ओवर भी बने, कुछ सड़कों को चौड़ा भी किया गया, और अगर यह सब कुछ ना होता तो शायद दिल्ली एक गटर बन चुकी होती. लेकिन सवाल यह है, कि अगर पिछली सरकारों ने कुछ किया तो यह कोई अहसान नही था, यह तो उनकी ड्यूटी थी, फ़र्ज़ था उनका, लेकिन क्या आपको नही लगता, कि जो कुछ भी हुआ, उससे कहीं ज़्यादा होने की दरकार थी ? आख़िर कब तक हम ट्रॅफिक जाम, जल भराव, एंकरोचमेंट, पोल्यूशन को झेलते रहेंगे ? आख़िर कब हमारी महिलाएँ, बच्चे और बुजुर्ग अपने को सुरक्षित मान सकेंगे ? आख़िर कब हमारे नेता इस दलगत राजनीति से उपर उठकर, दिल्ली के लिए, दिल से काम करेगे ?
बी एस वोहरा
सोशल एक्टिविस्ट,
मेरी दिल्ली मेरी शान, मेरी दिल्ली मेरी पहचान.....
मेरी दिल्ली मेरी शान, मेरी दिल्ली मेरी पहचान.....
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