जोसफ बर्नाड
नई दिल्ली।। रसोई गैस, डीजल और केरोसिन के दाम बढ़ने के बाद राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे का राजनीतिक फायदा उठाने में लग गई हैं, मगर महंगाई के दौर का सिलसिला थमने वाला नहीं है।
ऐसे में आम आदमी को और झटके सहने के लिए तैयार रहना होगा। मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि पेट्रोलियम सेक्टर में जिन नीतियों को लेकर सरकार चल रही है, उसके चलते इस साल के अंत तक पेट्रोल 80 से 100 रुपये प्रति लीटर और रसोई गैस सिलिंडर बड़े शहरों में 600 रुपये तक पहुंच सकता है।
सूत्रों के अनुसार अगले माह तेल कंपनियां पेट्रोल की मूल्य समीक्षा करने जा रही हैं। पेट्रोल को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जा चुका है। तेल कंपनियां ने हाल ही में पेट्रोल की कीमत में 5 रुपये की बढ़ोतरी की है। इसके बावजूद कंपनियों को अब भी पेट्रोल पर करीब 7 से 8 रुपये का घाटा हो रहा है।
एक तेल कंपनी के उच्चाधिकारी का कहना है कि सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने का मतलब है कि उस प्रॉडक्ट पर सरकार कोई घाटा नहीं सहेगी। कंपनियों को वह प्रॉडक्ट नो प्रॉफिट और नो लॉस पर बेचना होगा। ऐसे में कंपनियों क्यों घाटा उठाएगी? जब भी मूल्य समीक्षा बैठक होगी, स्थिति का आकलन करके उचित फैसला किया जाएगा।
मार्केट एक्सपर्ट के. के. मदान का कहा है कि मौजूदा समय में पेट्रोल की रिटेल कीमत का आधार 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल है। तेल का आयात 100 डॉलर से ज्यादा पर चल रहा है। तेल कंपनियों को अब भी पेट्रोल पर घाटा हो रहा है। जिस तरह से अमेरिका और यूरोपीय देशों की वित्तीय हालत है, उसे देखते हुए तेल का खेल चल रहा है। तेल सस्ता होने का मतलब है कि भारत जैसे एशियाई देशों की आयात मोर्चें पर मजबूती और अर्थव्यवस्था में सुधार। यूरोपीय देश इस बात को बर्दाश्त नहीं करेंगे। यही कारण है कि तेल की कीमत कभी भी किसी भी स्तर पर पहुंच सकती है। ऐसे में रिटेल कीमतों का बढ़ते रहना तय है।
नई दिल्ली।। रसोई गैस, डीजल और केरोसिन के दाम बढ़ने के बाद राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे का राजनीतिक फायदा उठाने में लग गई हैं, मगर महंगाई के दौर का सिलसिला थमने वाला नहीं है।
ऐसे में आम आदमी को और झटके सहने के लिए तैयार रहना होगा। मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि पेट्रोलियम सेक्टर में जिन नीतियों को लेकर सरकार चल रही है, उसके चलते इस साल के अंत तक पेट्रोल 80 से 100 रुपये प्रति लीटर और रसोई गैस सिलिंडर बड़े शहरों में 600 रुपये तक पहुंच सकता है।
सूत्रों के अनुसार अगले माह तेल कंपनियां पेट्रोल की मूल्य समीक्षा करने जा रही हैं। पेट्रोल को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जा चुका है। तेल कंपनियां ने हाल ही में पेट्रोल की कीमत में 5 रुपये की बढ़ोतरी की है। इसके बावजूद कंपनियों को अब भी पेट्रोल पर करीब 7 से 8 रुपये का घाटा हो रहा है।
एक तेल कंपनी के उच्चाधिकारी का कहना है कि सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने का मतलब है कि उस प्रॉडक्ट पर सरकार कोई घाटा नहीं सहेगी। कंपनियों को वह प्रॉडक्ट नो प्रॉफिट और नो लॉस पर बेचना होगा। ऐसे में कंपनियों क्यों घाटा उठाएगी? जब भी मूल्य समीक्षा बैठक होगी, स्थिति का आकलन करके उचित फैसला किया जाएगा।
मार्केट एक्सपर्ट के. के. मदान का कहा है कि मौजूदा समय में पेट्रोल की रिटेल कीमत का आधार 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल है। तेल का आयात 100 डॉलर से ज्यादा पर चल रहा है। तेल कंपनियों को अब भी पेट्रोल पर घाटा हो रहा है। जिस तरह से अमेरिका और यूरोपीय देशों की वित्तीय हालत है, उसे देखते हुए तेल का खेल चल रहा है। तेल सस्ता होने का मतलब है कि भारत जैसे एशियाई देशों की आयात मोर्चें पर मजबूती और अर्थव्यवस्था में सुधार। यूरोपीय देश इस बात को बर्दाश्त नहीं करेंगे। यही कारण है कि तेल की कीमत कभी भी किसी भी स्तर पर पहुंच सकती है। ऐसे में रिटेल कीमतों का बढ़ते रहना तय है।
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