नई दिल्ली।। बिजली का नया टैरिफ तय करने की प्रोसेस में दिल्ली इलैक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी अथॉरिटी ( डीईआरसी ) के पास लोग सुझाव भेज रहे हैं। अगले महीने इस पर पब्लिक हेयरिंग होगी , जिसमें कई इशू उठाए जाएंगे। इसके बाद ही तय होगा कि दिल्ली में बिजली के नए रेट क्या होंगे। कई आरडब्लूए बिजली की खरीदने पर भी सवाल उठा रही हैं।
एक्स्ट्रा पावर का बोझ क्यों ? : डीईआरसी को भेजे सुझाव में जीके -1 आरडब्लूए प्रतिनिधि राजीव काकरिया ने कहा कि ' ओवर प्रोविजनिंग ' से कंस्यूमर की जेब पर एक्स्ट्रा बोझ पड़ा है। ओवर प्रोविजनिंग का मतलब है जरूरत से ज्यादा बिजली की खरीद। बिजली कंपनियों के पास ऐसे सॉफ्टवेयर हैं जिनसे पीक डिमांड का अंदाजा लगाया जा सकता है। इससे 2-3 पर्सेंट ज्यादा बिजली खरीदी जा सकती है। लेकिन अभी 24 घंटे बिजली देने के नाम पर डिमांड से बहुत ज्यादा बिजली खरीदी जा रही है। जिससे बाद में दिखाया जाता है कि खरीदी गई एक्स्ट्रा बिजली को कम दाम में बेचा गया और घाटे की भरपाई के लिए कंस्यूमर की जेब खाली की जाती है। इसके बावजूद दिल्ली में बिजली गुल हो ही रही है। अगर अचानक डिमांड बढ़ती है तो कंपनी कुछ बिजली महंगे दाम में खरीद सकती हैं।
ज्यादा बिजली खर्च करने वाले चुकाएं ज्यादा दाम : सुझाव में कहा गया है कि जिन लोगों की वजह से ज्यादा बिजली खरीदनी पड़ती है , उन्हीं से एक्स्ट्रा दाम लिए जाएं। अभी खरीदी गई बिजली का बोझ सारे कंस्यूमर्स पर डाला जाता है , चाहे वह 300 यूनिट बिजली खर्च करे या 1500 यूनिट। जो कंस्यूमर महीने में 1200 या इससे ज्यादा बिजली खर्च करते हैं उनसे ज्यादा कीमत ली जाए ताकि लोग कम बिजली खर्च करने को भी प्रोत्साहित हों।
मैकेनिजम हो ट्रांसपेरेंट : ईस्ट दिल्ली आरडब्लूए जॉइंट फ्रंट के बी . एस . वोहरा ने कहा कि पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन के आंकड़े दिखाते हैं कि बिजली कंपनियों को फायदा हो रहा है जबकि कंपनियां कहती हैं कि वह घाटे में हैं। वह कहां से कितनी बिजली खरीदते हैं यह जानकारी वेबसाइट पर डालनी चाहिए। ऊर्जा संस्था के सौरभ गांधी ने कहा कि पावर परचेज कॉस्ट अडजेस्टमेंट के नाम पर कंस्यूमर से ज्यादा बिल लेने का जो ऑर्डर दिया है वह गैर कानूनी है और इसे वापस लिया जाना चाहिए।
एक्स्ट्रा पावर का बोझ क्यों ? : डीईआरसी को भेजे सुझाव में जीके -1 आरडब्लूए प्रतिनिधि राजीव काकरिया ने कहा कि ' ओवर प्रोविजनिंग ' से कंस्यूमर की जेब पर एक्स्ट्रा बोझ पड़ा है। ओवर प्रोविजनिंग का मतलब है जरूरत से ज्यादा बिजली की खरीद। बिजली कंपनियों के पास ऐसे सॉफ्टवेयर हैं जिनसे पीक डिमांड का अंदाजा लगाया जा सकता है। इससे 2-3 पर्सेंट ज्यादा बिजली खरीदी जा सकती है। लेकिन अभी 24 घंटे बिजली देने के नाम पर डिमांड से बहुत ज्यादा बिजली खरीदी जा रही है। जिससे बाद में दिखाया जाता है कि खरीदी गई एक्स्ट्रा बिजली को कम दाम में बेचा गया और घाटे की भरपाई के लिए कंस्यूमर की जेब खाली की जाती है। इसके बावजूद दिल्ली में बिजली गुल हो ही रही है। अगर अचानक डिमांड बढ़ती है तो कंपनी कुछ बिजली महंगे दाम में खरीद सकती हैं।
ज्यादा बिजली खर्च करने वाले चुकाएं ज्यादा दाम : सुझाव में कहा गया है कि जिन लोगों की वजह से ज्यादा बिजली खरीदनी पड़ती है , उन्हीं से एक्स्ट्रा दाम लिए जाएं। अभी खरीदी गई बिजली का बोझ सारे कंस्यूमर्स पर डाला जाता है , चाहे वह 300 यूनिट बिजली खर्च करे या 1500 यूनिट। जो कंस्यूमर महीने में 1200 या इससे ज्यादा बिजली खर्च करते हैं उनसे ज्यादा कीमत ली जाए ताकि लोग कम बिजली खर्च करने को भी प्रोत्साहित हों।
मैकेनिजम हो ट्रांसपेरेंट : ईस्ट दिल्ली आरडब्लूए जॉइंट फ्रंट के बी . एस . वोहरा ने कहा कि पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन के आंकड़े दिखाते हैं कि बिजली कंपनियों को फायदा हो रहा है जबकि कंपनियां कहती हैं कि वह घाटे में हैं। वह कहां से कितनी बिजली खरीदते हैं यह जानकारी वेबसाइट पर डालनी चाहिए। ऊर्जा संस्था के सौरभ गांधी ने कहा कि पावर परचेज कॉस्ट अडजेस्टमेंट के नाम पर कंस्यूमर से ज्यादा बिल लेने का जो ऑर्डर दिया है वह गैर कानूनी है और इसे वापस लिया जाना चाहिए।
with thanks : Nav Bharat Times : March 18, 2013 : Link
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