Sunday, June 9, 2019
Friday, June 7, 2019
Wednesday, June 5, 2019
Monday, June 3, 2019
Please ask DISCOMs to REFUND the excess collections of Fixed Charges
@ArvindKejriwal दिल्ली के CM श्री अरविंद केजरीवाल जी को बहुत बहुत धनय्वाद की उन्होने बिजली के फिक्स्ड चार्जस को रोल बॅक करने की अनाउन्स्मेंट कर दी. पिछले लगभग 13 महीनों से हम लोग इन फिक्स्ड चार्जस को कम करवाने के लिए संघर्ष कर रहे थे. अब जबकि CM साहिब का कहना है की DERC ने ये दाम बिना उनको कन्सल्ट किए ही बड़ा दिए थे, इसलिए हम अब ये चाहते हैं की केजरीवाल साहिब, डिस्कोमस को बोल कर जितना भी पैसा ज़्यादा वसूला गया है, उसका रिफंड करवाएँ ताकि दिल्ली के लोगों को रिलीफ मिल सके.
@ArvindKejriwal Thanks for the Roll Back of the Fixed charges of Electricity, demanded by us regularly for the last over 13 months. Please ask DISCOMs to REFUND the excess collections, as the Fixed charges were increased by the DERC without consulting you, Thanks. @RWABhagidari pic.twitter.com/maD3s7NKpS— B S Vohra (@RWABhagidari) June 3, 2019
Thanks.
B S Vohra.
@rwabhagidari
@rwabhagidari
Saturday, June 1, 2019
Delhi Assembly elections 2020
प्रिय नागरिक
विधान सभा चुनाव निकट हैं. आने वाले समय में स्थानीय राजनीती और विधायकों के निर्वाचन पर सामाजिक व्यवहार का असर कैसा होगा यह सोचना ज़रूरी है.
यह लेख हमारे समाज की एक कमज़ोरी ; विचारहीन तरफदारी, पर रौशनी डालेगा जो दिल्ली की बिगड़ी हुई शासन व्यवस्था का बहुत बड़ा कारण है.
बिना सोचे समझे, बुद्धि के प्रयोग के बिना कोई पक्ष ले लेना एक आदत सी बन गयी है. सोशल मीडिया के आने से यह मनोवृत्ति और भी बढ़ती जा रही है. किसी भी मुद्दे को विचाराधीन करने से पहले ही बेबाक हो बयान दे देना या फिर पड़ोस में होने वाली हर अहम् बहस पर भाई-भतीजावाद करने लगना, नागरिकों के लिए अपने ही नुक्सान का कारण बनता जा रहा है. दुःख की बात तो यह भी है की हम इस बात पर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं की किस कदर यह सामाजिक परिस्थिति हमारा अपना बेडा ग़र्क़ कर रही है
जब भी कूड़ा करकट, वायु प्रदूषण, गन्दगी, टूटी सड़क, जाम हुई नालियां या फिर सार्वजनिक भूमि पर अवैध अतिक्रमण की बात सामने आती है तो उसके पीछे बहुत हद तक इस प्रवृति का हाथ होता है
गौर फरमाइए, आपके इलाके में अगर नाली बंद हो जाये तो क्या सब निवासी एक ही आवाज़ में बोलेंगे? या फिर अगर सड़क टूटी हो तो क्या सब एक साथ होकर अपने पार्षद, विधायक और सांसद के पास शिकायत ले कर जायेंगे ? हरगिज़ नहीं। साधारण से साधारण नागरिक भी, बिना वजह पार्टीवाद का हिस्सा बन जायेगा. अगर ऐसा नहीं होता तो आपके इलाके की सड़कें, नालिया, और ढलाव साफ़ होते, और सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा होते ही रोक दिया जाता।
हम अक्सर अपनी विफ़लता को राजनीती बोल, नेता के सर पर मढ़ देते हैं लेकिन ध्यान दीजिये, ये बीमारी तो हमने खुद पाली है.
एक उद्धरण के माध्यम से इस मुसीबत पर प्रकाश डालता हूँ
अभी कुछ ही समय पहले दिल्ली के एक क्षेत्र में शराब की दुकान को लेकर कुछ ऐसा ही हुआ. शुरुआत में ऐसा प्रस्ताव की शराब की दूकान रिहाइशी इलाके में खुलेगी, को लेकर वहां के लोगों ने विरोध करना शुरू किया. लोग सड़क पर उतर आये और जम कर रोष प्रकट करते हुए बोले की वह अपने पड़ोस में शराब का ठेका नहीं खुलने देंगे
फिर क्या था, क्षेत्र के विपक्ष के नेता और निर्वाचित प्रतिनिधि भी मैदान में उतर आये. बस यहां से खेल खराब होना शुरू हुआ और समाज की कमज़ोरी बाहर आ गयी. जहां नेताओं ने क्षेत्र के निवासियों पर एक छोड़ दूसरी या तीसरी पार्टी के मेंबर या अनुगामी होने का इलज़ाम लगाना शुरू किया, वहीँ लोगों में बिना सोचे समझे तरफदारी करना शुरू हो गया . कुछ लोग दुबक गए, कुछ अलग -अलग नेताओं के सामने बोलने में आनाकानी करने लगे, और कुछ चुप-चाप समझाने में लग गए की शराब की दूकान पास ही में हो, तो क्या बुरा है? विरोध अलग थलग हो गया.
सच तो यह है की वोट आप किसे भी दें, पड़ोस शराब की दूकान आपके परिवार पर विपरीत असर डाल सकती है । शराब शरीर में घुस कर तरफदारी तो नहीं करेगी की फलां पार्टी के वोटर को कम चढ़ेगी और फलां पार्टी के वोटर को ज़्यादा। या फिर दुकानदार आपके बच्चे से ये तो नहीं पूंछेगा के ‘बेटा तुम्हारे पिता ने किसको वोट दिया क्योंकि उसी हिसाब से में तुम्हें शराब बेचूंगा या फिर नहीं बेचूंगा।’ जब शराब तरफदारी नहीं करेगी और शराब बेचने वाला नहीं करेगा तो लोग क्यों करने लग गए? क्यों इधर उधर भटक कर एक या फिर दूसरी साइड लेने लगे
ऐसा ही कुछ ट्रैफिक प्लानिंग में दक्षिण दिल्ली की एक अति धनवान कॉलोनी में भी हुआ. अब सब लोग ट्रैफिक में उलझे हैं लेकिन बिना सोचे समझे, ज़िद में, राजनितिक साइड लेते हुए घर फूँक तमाशा देख रहे हैं
URJA में हम अक्सर देखते हैं की पब्लिक और RWA अकसर इस तरह साइड लेने लगते हैं की टूटी सड़क, कूड़ा इत्यादि पर किसी भी तरह का कड़ा रुख अपनाया ही नहीं जा सकता। अफसर भी कुछ यूं सोचते हैं “की लड़ने दो इन लोगों को! और हम फ़ालतू में क्यों चक्कर में पड़ें?”
दिल्ली की बैड गवर्नेंस का यह एक बहुत बड़ा कारण है.
समझदारी तो इसमें है की कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जैसे टूटी सड़कें, बर्बाद फुटपाथ, कूड़े के ढेर, सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा, सिक्योरिटी, बह निकलते हुए हुए सीवर, जिस पर हम, चाहे किसी भी पक्ष को वोट देते हों, उस के नेता या उम्मीदवार से साफ़ साफ़ कह दें, की भाई यह नहीं चलेगा। हम किसी भी पार्टी से सरोकार रखते हों लेकिन दो टूक शब्दों में साफ़ साफ़ नेता से कह देना चाहिए कि ‘वोट की बात रही एक तरफ, लेकिन टूटी सड़क, गन्दगी, मच्छर काटने से बीमारी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। जो राज्य सरकार या निगम का काम है, वह तो एक जुट हो कर मांग लीजिये! इसमें क्यों राजनितिक साइड ले कर एक दुसरे का विरोध?
जनता से अनुरोध है की, समझदारी इसी में है की बिना सोचे समझे, तरफदारी बंद कीजिये। विधायक का चुनाव देश व्यापी मुद्दों से जुड़ा नहीं है. पूर्ण रूप से विधायक को क्यों चुनते हैं, आप सब के विधान सभा क्षेत्र के स्थानीय मुद्दों से जुड़ा है.
आपके इलाके में वैसा शासन है, जैसा आप केअधिकतम क्षेत्रिए निवासी चाहते हैं. जैसी करनी वैसी भरनी; हमारे पूर्वज व्यर्थ ही नहीं कह रहे थे।
Ashutosh Dikshit
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