जिस शहर का बिजली का अधिकतम लोड या फिर अधिकतम खपत 7,000 MW से भी कम हो और जिस शहर मे बिजली वालों ने लगभग 23,000 MW का लोड मंजूर किया हुआ हो और उसपर वो लोग नई दरों से फिक्स्ड चार्जस वसूल रहे हों तो आप लोग उसे क्या बोलेंगे ?
क्या इसका मतलब ये निकलता है की लगभग 16,000 MW का लोड सिर्फ़ कागजों पर है और हक़ीकत से उसका कोई भी लेना देना नही है ? और फिर भी अगर बिजली कोम्पनियाँ उस पर नई दरों से फिक्स्ड चार्जस वसूल रही हों तो इसका क्या मतलब निकाला जा सकता है ?
ज़रा हिसाब लगा कर देखिए कि 16,000 MW या फिर 1,60,00,000 KW पर इन बिजली कोम्पनीओ को कम से कम भी 125 रुपये हर KW के हिसाब से कितना पैसा हर महीने फ़िजूल का मिल रहा है ?
अब जवाब तो दिल्ली सरकार को या फिर DERC को देना होगा कि आख़िर किस के कहने पर फिक्स्ड चार्जस को बड़ाया गया और किन शर्तों पर इन बिजली कंपॅनियन को भारी मुनाफ़ा दिया गया.
अब एक ईमानदार सरकार से क्या हम इतनी भी उम्मीद नही रख सकते कि वो जनता के समक्ष सच्चाई रखेगी?
अब एक ईमानदार सरकार से क्या हम इतनी भी उम्मीद नही रख सकते कि वो जनता के समक्ष सच्चाई रखेगी?