टीपीडीडीएल क्षेत्र में 1.5 प्रतिशत और बीएसईएस राजधानी व यमुना क्षेत्र में 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी
नई दिल्ली (एसएनबी)। डीईआरसी ने एक बार फिर बिजली दरों में बढ़ोतरी कर
उपभोक्ताओं को करारा झटका दिया है। बीएसईएस यमुना और राजधानी के क्षेत्रों
में यह बढ़ोतरी तीन प्रतिशत और टीपीडीडीएल के क्षेत्रों में यह बढ़ोतरी 1.5
पर्सेट की गई है। बढ़ी दरें 1 फरवरी से लागू होंगी। बढ़ोतरी की वजह पावर
एडजेस्टमेंट बताई गई है। बीएसईएस राजधानी, यमुना और टीपीडीडीएल ने पावर
परचेज एडजेस्टमेंट करने के लिए डीईआरसी को 21 जनवरी 2013 को आवेदन दिया था।
तीनों ने अपने आवेदन में कहा था कि लगातार बिजली उत्पादन कंपनियों द्वारा
बिजली दरों में बढ़ोतरी की जा रही है। इस कारण उन पर अतिरिक्त भार पड़ रहा
है।
इसलिए बिजली दरों में बिजली खरीद की बढ़ी दरों को समायोजित किया जाए। आयोग
ने इन आवेदनों पर सुनवाई के बाद टीपीडीडीएल के क्षेत्र में 1.5 पर्सेट और
बीएसईएस राजधानी और यमुना के क्षेत्रों में बिजली दरों में 3 पर्सेट की
बढ़ोतरी कर दी है। इस बढ़ोतरी के बाद बीएसईएस यमुना और राजधानी के
उपभोक्ताओं को अब 200 यूनिट तक बिजली खर्च करने पर 3 रुपए 70 पैसे की बजाय 3
रुपए 81 पैसे की दर से प्रति यूनिट बिजली का भुगतान करना होगा। 200 से 400
यूनिट तक बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को 4 रुपए 94 पैसे और 400 यूनिट
से अधिक बिजली खपत करने वालों को 5 रुपए 70 पैसे प्रति यूनिट की बजाय 5
रुपए 89 पैसे की दर से प्रति यूनिट बिजली का भुगतान करना पड़ेगा।
व्यावसायिक क्षेत्रों में बिजली की दरें अब 6 रुपए 69 पैसे प्रति यूनिट हो
जाएंगी। इसी प्रकार, टीपीडीडीएल क्षेत्र में 200 यूनिट तक बिजली खपत पर 3
रुपए 70 पैसे की बजाय 3 रुपए 75 पैसे, 200 से 400 यूनिट तक खपत पर 4 रुपए
80 पैसे की बजाय 4 रुपए 87 पैसे और 400 यूनिट से अधिक बिजली खर्च करने पर 5
रुपए 70 पैसे की बजाय 5 रुपए 78 पैसे की दर से प्रति यूनिट का भुगतान करना
पड़ेगा। व्यावसायिक और इंडस्ट्रियल क्षेत्रों की बिजली दरों में भी 1.5
पर्सेट की बढ़ोतरी की गई है। वैसे आवेदन में टीपीडीडीएल ने 2.8 पर्सेट,
बीएसईएस राजधानी ने 9.18 और बीएसईएस यमुना ने 7.44 पर्सेट की बढ़ोतरी की
मांग की थी। विद्युत विनियामक आयोग के अध्यक्ष पीडी सुधाकर ने कहा कि
अक्टूबर से दिसंबर 2012 की तिमाही में पावर परचेज एडजेस्टमेंट नहीं किया
गया था। अगर इस बार भी बिजली की बढ़ी दरों का समायोजन न किया जाता, तो
वितरण कंपनियों पर घाटे का बोझ बढ़ जाता और आने वाले समय में उपभोक्ताओं को
ही इसका खमियाजा उठाना पड़ता।
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