Courtesy Nav Bharat Times 10 th Jan 2012 ( Tuesday)
नई दिल्ली ।। दिल्ली इलैक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमिशन ( डीईआरसी ) ने दिल्ली इलैक्ट्रिसिटी सप्लाई कोड एंड परफॉर्मेंस स्टैंडर्ड रेगुलेशन -2012 तैयार किया है। इस पर पब्लिक से सुझाव भी मांगे गए हैं। आरडब्ल्यूए का कहना है कि यह ड्राफ्ट पब्लिक को बहलाने के लिए है। इसमें किन्हीं भी ऐसे ठोस उपायों का जिक्र नहीं है , जिससे ढांचा सुधरे। बिजली कंपनियों की कोई जिम्मेदारी तय नहीं की गई है और न ही इसका इंतजाम किया है कि अगर कंपनी की वजह से कंज्यूमर को नुकसान हो तो उसकी भरपाई कैसे हो। डीईआरसी ने कहा है कि कोई भी इस ड्राफ्ट पर 11 फरवरी तक अपनी राय दे सकता है। जिसके बाद जन सुनवाई भी होगी।
आरडब्ल्यूए प्रतिनिधि राजीव काकरिया ने कहा कि जब तक बिजली कंपनियों की जिम्मेदारी तय नहीं होगी और परफॉर्मेंस स्टैंडर्ड पर खरा न उतरने पर पेनल्टी से लेकर लाइसेंस रद्द करने जैसे कदम नहीं उठाए जाएंगे , तब तक महज कुछ नियम बना लेने से कुछ नहीं होगा। काकरिया के मुताबिक इसमें कहा गया है कि कनेक्शन देते वक्त वायरिंग की जांच की जाएगी। अगर कुछ डिफेक्ट है तो कंज्यूमर को नोटिस दिया जाएगा और उसके ठीक होेने पर ही कनेक्शन मिलेगा। लेकिन इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि जो 25 लाख मीटर पहले से लगे हैं और रेसिडियल बैक फ्लो की वजह से ज्यादा बिल आता है , उसे कैसे सुधारा जाएगा। इसके लिए बिजली कंपनियों की जवाबदेही भी तय नहीं की गई है। हर मीटर तक सेपरेट न्यूट्रल न देने की वजह से बिजली कंपनी ग्राहकों से 25 से 40 पर्सेंट एक्स्ट्रा बिल वसूल रही हैं। इसका हिसाब कौन देगा। ड्राफ्ट में जिक्र नहीं है कि कंज्यूमर्स को जो नुकसान हुआ है , उसे बिजली कंपनियां कैसे भरेंगी।
ड्राफ्ट में यह तो कहा गया है कि बिजली चोरी रोकने के लिए बिजली कंपनियां कदम उठाएंगी और आरडब्ल्यूए से मदद भी लेंगी। काकरिया ने कहा कि इसके साथ यह इंतजाम भी होना चाहिए बिजली चोरी के आधार पर टैरिफ नहीं बढ़ना चाहिए। अगर किसी दुकानदार का सामान चोरी हो जाता है तो वह अपने ग्राहक को महंगा सामान नहीं बेच सकता है , इसी तरह टैरिफ बढ़ाना भी गलत है। सिर्फ 3 पर्सेंट डिस्ट्रिब्यूशन लॉस ही उन्हें मिलना चाहिए। ऐसा होने पर ही वह बिजली चोरी रोकने के लिए गंभीर कदम उठाएंगे।
ड्राफ्ट में कहा गया है कि वोल्टेज की शिकायत होने पर इसे सुधारने के लिए जरूरी एक्शन लिया जाएगा। लेकिन ऐसा न होने पर कोई पेनल्टी नहीं लगाई गई है। आरडब्लूए के मुताबिक प्राइवेटाइजेशन हुआ ही इसलिए था , ताकि ग्राहकों को स्टेबल पावर मिले। लेकिन अभी भी हर कंज्यूमर को साल में 15 हजार रुपये इन्वर्टर पर खर्च करना होता है और स्टेबलाइज लगाना मजबूरी बनी हुई है। बिजली कंपनियों की लापरवाही की वजह से वोल्टेज फ्लक्चुएशन होने पर लोगों की टीवी , फ्रिज , कंप्यूटर , बल्ब जैसे आइटम फुंकते हैं। इसकी भरपाई कैसे होगी , परफॉर्मेस स्टैंडर्ड में इसका भी जिक्र नहीं है। चेतना संस्था के अनिल सूद ने कहा कि 2005 में बने रेगुलेशन में 2007 में बदलाव किए गए , लेकिन नोटिफाई करने के बाद ही उसे कहीं लागू नहीं किया गया। न ही इसमें पेनल्टी क्लॉज डाले , ताकि बिजली कंपनियों की जवाबदेही तय हो। इसके बाद 2010 में फिर कुछ बदलाव हुए लेकिन उसे आज तक नोटिफाई ही नहीं किया गया है। सूद ने कहा कि डीईआरसी बिजली कंपनियों का फायदा पहुंचाने वाले नियम तो तत्काल लागू कर देती है लेकिन ग्राहकों के हितों की हमेशा अनदेखी ही हुई है।
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