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Wednesday, July 27, 2016

दिल्ली आख़िर कब तक डूबती रहेगी ?

कल फिर से एक बार, दिल्ली, बरसात के पानी मे डूब गई. यह कोई पहली बार नही थी, जब ये सब कुछ हुआ. पिछले जाने कितने सालों से ये हर साल होता है, बार बार होता है. लोग रोते हैं, कलपते हैं, सरकारों को कोसते हैं लेकिन होता कुछ भी नही. कोई सुनवाई नही. सिविक एजेन्सीस सिर्फ़ ब्लेम का ठीकरा दिल्ली सरकार पे फोड़ देती हैं और दिल्ली सरकार सिविक एजेन्सीस पे. साल दर साल निकलते जाते हैं और दिल्ली की परिस्थिति लगातार गंभीर होती जाती है.


अबके तो टॉक टू AK मे दिल्ली के CM ने भी बोल ही दिया की हमारी नालियाँ तो सॉफ हो जाती हैं लेकिन ये BJP वाले अपनी नालियाँ सॉफ नही करते जिससे पानी सड़कों पे आ जाता है. कॉंग्रेस की सरकार थी या आज AAP की सरकार है,  MCD भी लगातार बोलती रहती है की ये PWD वाले अपने नाले सॉफ नही करते जिससे दिल्ली की सड़कों से पानी नही निकलता. अब दोष चाहे किसी का भी हो, ब्लेम का ठीकरा चाहे किसी के भी सिर पे फोड़ा जाए, लेकिन डूबना तो हर साल सिर्फ़ दिल्ली को पड़ता है और भुगतना भी हर साल, सिर्फ़ दिल्ली वालों को ही पड़ता है. क्या दिल्ली की फ़ितरत मे सिर्फ़ लुटना और डूबना ही लिखा है ?


इसका मतलब यह नही की देश के दूसरे हिस्सों मे बारिश नही आती या पानी भरने से बर्बादी नही होती. इसका मतलब सिर्फ़ इतना है की अगर देश की राजधानी ही डूब सकती है तो दूसरे इलाक़ों का तो सिर्फ़ भगवान ही मालिक है. लेकिन आज एक सवाल, दिल्ली की सरकार से, दिल्ली की ऑपोसिशन पार्टी से जो कभी सरकार मे थी, और, दिल्ली की mcd वाली सरकार से कि दिल्ली आख़िर कब तक डूबती रहेगी ?  


अगर आप दिल्ली को डूबने से नही बचा सकते, अगर आप दिल्ली को गंदगी से नही बचा सकते, अगर आप दिल्ली को पोल्यूशन से नही बचा सकते, अगर आप दिल्ली को चोरी, चकारि व लूट से नही बचा सकते, अगर आप दिल्ली को सड़कों के गड़ों से नही बचा सकते, अगर आप दिल्ली को ट्रॅफिक जाम से नही बचा सकते, और अगर आप दिल्ली को रेप कॅपिटल बनने से नही बचा सकते, तो आप चुनाव लड़ते ही क्यों हैं ?  


क्यों लगातार, बार बार, हर बार, आप ही लोगों को टिकेट मिल जाती है ? क्या आपके उपर कोई कोड ऑफ कंडक्ट नही होना चाहिए ? क्या आपके उपर वर्किंग या नोन वर्किंग का कोई ग्रेड नही होना चाहिए ? और जो पोलिटिकल पार्टी, काम के बदले मे सिर्फ़ ब्लेम गेम करे, क्या उसकी मानयता ही रद नही होनी चाहिए ताकि दूसरी पार्टियाँ भी सबक ले सकें ?

बी एस वोहरा
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