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Friday, June 21, 2019
फिक्स्ड चार्जेज का पैसा दिल्ली को वापिस मिलना चाहिये
एक तरफ आप बोलते हो की पिछले ४ सालों में आपने दिल्ली में बिजली के टैरिफ को नहीं बडाया। दूसरी तरफ आपने बिजली के फिक्स्ड चार्जेज को ६ से १० गुना तक बड़ा दिया। इसका नतीजा ये हुआ की डिस्कॉम्स को तो जितने बड़े हुए पैसे चाहिए थे वो मिल गए। तो फिर आप दिल्ली के लोगों से ये कैसे बोल रहे हो की दिल्ली में बिजली के रेट नहीं बड़े?
आपणे बिजली पर १७०० करोड़ की सब्सिडी दे दि। इसका नतीजा ये हुआ की अपने बिल का कुछ हिस्सा तो लोग खुद देते हैं और बाकि आप चूका देते हो। जिससे डिस्कॉम्स तो पूरा पैसा मिल जाता है और आप बोलते हो की दिल्ली में बिजली सबसे सस्ती है। लेकिन वो पैसा जो आप सब्सिडी में दे देते हो, वो पैसा आपका अपना थोड़ी न है। वो भी तो दिल्ली की जनता का पैसा है तो फिर दिल्ली में बिजली सस्ती कैसे हुई ?
April २०१८ से हम लोग शोर मचा रहे हैं की फिक्स्ड चार्जेज के नाम पर दिल्ली वालों को लूटा जा रहा है। अब जबकि लोक सभा में आपको झटका लग गया तो आपकी नींद खुली और आपने बोलना शुरू किया की DERC ने आपसे पूछे बिना ये फिक्स्ड चार्जेज बड़ा दिए थे और अब जुलाई में दोबारा से कम हो जाऐंगे। DELHI में ये फिक्स्ड चार्जेज कम तो होने ही चाहिए इसके साथ साथ पिछले १५ महीनो में जो पैसा एक्सेस कलेक्ट हुआ है, वो पैसा भी दिल्ली को वापिस मिलना चाहिये।
B S Vohra
President
East Delhi RWAs Joint Front - Federation
Sunday, June 16, 2019
The Game of Fixed Charges by AAP !
This is how you do the projections? 264 + 73% +73% = 760? Strange & shocking. Your govt hiked the Fixed charges by 6 to 10 TIMES in just 4 years. Why don't you do the projection of Fixed charges for the next 6 to 8 years on the above basis and share the outcome?
Just let us know how much you pay to the DISCOMs for a 1kW connection with 50 units of consumption? If a consumer pays 128, the balance is paid by you to the DISCOMs out of the subsidy collected from hard earned money of the same set of people. In such a case how the power is cheaper in Delhi while DISCOMs get the full booty?
Strange n shocking. You have shown the projections from 1kW to 5kW only and only up to 400 units which are covered by your subsidy. Still, your projections clearly show that people are paying MORE over n above the 1kW of sanctioned load due to the hike of Fixed charges, while DISCOMs also get Rs 1700 cr as subsidy and you still say you have not hiked the power tariff in Delhi?
Why you have not shared the projections of power consumption of over 400 units with sanctioned load of over n above 5kW, 10kW, 15kW, 25kW, 50kW? This will surely give a clear picture of how much hike has been done by you in the Fixed charges.
In the last 4 years, you hiked the fixed charges by 6 to 10 times in Delhi. Now you have announced that Fixed charges will be reduced back to the normal. But whats about Rs 4709 crore collected by DISCOMs in the last 12 months? If it was not a deal or a gift to the DISCOMs, why don't you ask DISCOMs to refund the booty collected by them in 12 + 4 = 16 months till July, to the consumers immediately?
Truly the burden of subsidy has remained constant on the shoulders of the consumers as one part is paid by the consumers and the balance is paid by you as a subsidy, out of the hard earned money of the consumers, while DISCOMs get the total amount
Have you proceeded to the SC for the CAG audit of DISCOMs so that truth could come forward, Tariff could be slashed, the subsidy could be saved for relief to the consumers?
B S Vohra
B S Vohra
Saturday, June 15, 2019
Fixed Charges - आपकी अपनी रिपोर्ट आप को ही आईना दिखा रही है.
केजरीवाल साहिब,
दो दिन पहले आपने दिल्ली की जनता के सामने एक चार्ट पेश किया दिल्ली के पोवेर टॅरिफ को लेकर.
मेरे कुछ सवाल हैं आपसे इस बारे मे:
मेरे कुछ सवाल हैं आपसे इस बारे मे:
1. क्या आप के यहाँ पोवेर टॅरिफ का प्रोजेक्षन इसी तरह से होता है कि अगर 2010 से 2013 मे किसी भी वजह से पोवेर टॅरिफ मे 70 - 72% का इज़ाफा हुआ था, तो 2013 से 2016 और 2016 से 2019 मे भी उसी रेट पर इज़ाफा होगा?
अगर आपका यही सिस्टम है तो क्या ये समझा जाए की आपने जो फिक्स्ड चार्जस के टॅरिफ मे 6 से 10 गुना का इज़ाफा किया था, अगले 6 सालों मे, आपकी पॉलिसी की तर्ज पर, ये इज़ाफा 18 से 30 गुना का हो जाएगा, यानी की दिल्ली की जनता को 18 से 30 गुना का फिक्स्ड चार्ज देना पड़ेगा?
और अगर आप ये बोलते हैं की वो इज़ाफा तो आप जुलाइ मे वापिस ले लेंगे, तो फिर पिछले 15 महीनों से दिल्ली वाले जो फिक्स्ड चार्जस का भारी भरकम लोड उठा रहे थे, उसका क्या होगा? क्या वो आपकी तरफ से डिस्कोमस को कोई गिफ्ट था? कोई डील थी? कोई समझोता था? अगर नहीं तो उस पैसे को, उस लगभग 5 से 7000 क्रोर की भारी भरकम रकम को वापिस दिलवाइए.
2. आपने यह तो बोल दिया की दिल्ली मे बिजली के रेट सबसे सस्ते हैं और उसे दर्शाने के लिए आपने 50 यूनिट्स का बिल 128 रुपये दिखा दिया. मैं आपसे यह पूछना चाहता हूँ की बिजली कंपनीज़ को आप किस रेट पर पेमेंट करते हैं? अगर आप उपभिक्ता से 50 यूनिट्स के 128 रुपये लेते हैं तो क्या बिजली कंपनीज़ को भी आप 50 यूनिट्स के 128 रुपये देते हैं? अगर ऐसा है तो 1700 क्रोरे की सब्सिडी किस बात की दी जाती है?
मैं आपसे पूछना चाहता हूँ की वो 1700 क्रोरे की सब्सिडी क्या आप अपनी जेब से भरते हैं या फिर वो दिल्ली के लोगों के खून पसीने की कमाई होती है जिसे लोग विभिन्न्न टेक्स के रूप मे चुकाते हैं?
यानी की आप उपभोक्ताओं से तो 50 यूनिट्स के 128 रुपये लेते हैं, लेकिन बिजली कंपनीज़ को आप पूरी पेमेंट करते हैं. तो फिर दिल्ली मे बिजली सबसे सस्ती कैसे हो गई जबकि आप तो उसका पूरा भुगतान कर रहे हैं ?
3. आपने जो भी प्रोजेक्षन्स दिखाई हैं, वो सिर्फ़ 1 से 5 kW और 400 यूनिट्स तक की प्रोजेक्षन्स हैं जिन पर आपकी सब्सिडी लागू होती है. आपको चाहिए था की आप 5kW से उपर के सॅंक्षंड लोड पर भी, जैसे की 6, 7, 8, 9, 10kW, 15kW, 20kW, 25kW, 30kW, 35kW, 40kW, 50kW और उसके उपर के लोड की भी प्रोजेक्षन दिखाते.
इसके साथ साथ, 400 यूनिट्स क्रॉस होने पर जब सब्सिडी ख़तम हो जाती है, तो उसकी भी, जैसे की 600 यूनिट्स, 700 यूनिट्स, 800 यूनिट्स, 900 यूनिट्स, 1000 यूनिट्स, 1100 यूनिट्स, और उससे ज़्यादा यूनिट्स का भी प्रोजेक्षन दिखाते. लेकिन क्या आपको ऐसा नही लगता की आपने सिर्फ़ अपनी बात को सच दिखाने के लिए आधे अधूरे सच को गल्त ढंग से पेश किया है?
इसके साथ साथ, 400 यूनिट्स क्रॉस होने पर जब सब्सिडी ख़तम हो जाती है, तो उसकी भी, जैसे की 600 यूनिट्स, 700 यूनिट्स, 800 यूनिट्स, 900 यूनिट्स, 1000 यूनिट्स, 1100 यूनिट्स, और उससे ज़्यादा यूनिट्स का भी प्रोजेक्षन दिखाते. लेकिन क्या आपको ऐसा नही लगता की आपने सिर्फ़ अपनी बात को सच दिखाने के लिए आधे अधूरे सच को गल्त ढंग से पेश किया है?
4. हैरानगी इस बात की है की इतना सब कुछ गल्त तरीके से पेश करने के बाद भी, सिर्फ़ 1 से 5 kW और सिर्फ़ 400 यूनिट्स तक का प्रोजेक्षन दिखाने के बाद भी, और 1700 क्रोर की सब्सिडी देने के बाद भी, 1 से 5 kW की 400 यूनिट्स की प्रोजेक्षन मे भी आपके अपने रेट बड़े हुए दिखाई दे रहे हैं. आपकी अपनी रिपोर्ट आप को ही आईना दिखा रही है.
आप अपनी उसी प्रोजेक्षन वाले पेज को खोलिए और नीचे से शुरू हो जाइए, 1843 (2019) मे से 1370 (2015) घटाते घटाते, उपर की तरफ बडीए तो आप को सॉफ सॉफ दिखने लगेगा की इतने कुपर्चार के बाद भी, इतनी गल्त प्रोजेक्षन दिखाने के बाद भी, 1700 क्रोर की भारी भरकम सब्सिडी देने के बाद भी दिल्ली के लोगों को पहले से ज़्यादा पैसे देने पॅड रहे हैं?
आप अपनी उसी प्रोजेक्षन वाले पेज को खोलिए और नीचे से शुरू हो जाइए, 1843 (2019) मे से 1370 (2015) घटाते घटाते, उपर की तरफ बडीए तो आप को सॉफ सॉफ दिखने लगेगा की इतने कुपर्चार के बाद भी, इतनी गल्त प्रोजेक्षन दिखाने के बाद भी, 1700 क्रोर की भारी भरकम सब्सिडी देने के बाद भी दिल्ली के लोगों को पहले से ज़्यादा पैसे देने पॅड रहे हैं?
5. हाँ इस पूरी प्रोजेक्षन मे आपने एक बात बिल्कुल सच कही - the burden of subsidy has remained constant - क्योंकि सारे का सारा भार तो उपभोक्ताओं के उपर constant हैं. 50 यूनिट्स के लिए लोग अपनी जेब से 128 रुपये दें और बाकी का बिल आप डिस्कोमस को सब्सिडी देकर पूरा कर दो. तो फिर खरबूजा चाकू पर गिरे या फिर चाकू खरबूजे पर, कॅट्ना तो आख़िर खरबूजे को ही है ना.
अब वो बात अलग होती की आप दिल्ली के लोगों की सेवा करने की खातिर, डिसकम्स पर दबाव बनाते, उनके टॅरिफ को कम करवाते, ये 8 से 9000 क्रोर की सब्सिडी जो आप 5 सालों मे दे देंगे, उसे बचा लेते तो जाने कितने आधे अधूरे प्रॉजेक्ट्स पूरे हो जाते. जनता की भलाई की खातिर, CAG ऑडिट के लिए सुप्रीम कोर्ट मे अपील करते, लेकिन शायद सत्ता मे आने के बाद ऐसा करना मुमकिन नहीं होता और इसीलिए जनता को अपना दमन चक्र चला कर बदलाव करना पड़ता है.
आपकी अगली रिपोर्ट और प्रोजेक्षन की उड़ीक मे,
B S Vohra
President,
East Delhi RWAs Joint Front
www.RWABhagidari.com
Monday, June 10, 2019
Sunday, June 9, 2019
Friday, June 7, 2019
Wednesday, June 5, 2019
Monday, June 3, 2019
Please ask DISCOMs to REFUND the excess collections of Fixed Charges
@ArvindKejriwal दिल्ली के CM श्री अरविंद केजरीवाल जी को बहुत बहुत धनय्वाद की उन्होने बिजली के फिक्स्ड चार्जस को रोल बॅक करने की अनाउन्स्मेंट कर दी. पिछले लगभग 13 महीनों से हम लोग इन फिक्स्ड चार्जस को कम करवाने के लिए संघर्ष कर रहे थे. अब जबकि CM साहिब का कहना है की DERC ने ये दाम बिना उनको कन्सल्ट किए ही बड़ा दिए थे, इसलिए हम अब ये चाहते हैं की केजरीवाल साहिब, डिस्कोमस को बोल कर जितना भी पैसा ज़्यादा वसूला गया है, उसका रिफंड करवाएँ ताकि दिल्ली के लोगों को रिलीफ मिल सके.
@ArvindKejriwal Thanks for the Roll Back of the Fixed charges of Electricity, demanded by us regularly for the last over 13 months. Please ask DISCOMs to REFUND the excess collections, as the Fixed charges were increased by the DERC without consulting you, Thanks. @RWABhagidari pic.twitter.com/maD3s7NKpS— B S Vohra (@RWABhagidari) June 3, 2019
Thanks.
B S Vohra.
@rwabhagidari
@rwabhagidari
Saturday, June 1, 2019
Delhi Assembly elections 2020
प्रिय नागरिक
विधान सभा चुनाव निकट हैं. आने वाले समय में स्थानीय राजनीती और विधायकों के निर्वाचन पर सामाजिक व्यवहार का असर कैसा होगा यह सोचना ज़रूरी है.
यह लेख हमारे समाज की एक कमज़ोरी ; विचारहीन तरफदारी, पर रौशनी डालेगा जो दिल्ली की बिगड़ी हुई शासन व्यवस्था का बहुत बड़ा कारण है.
बिना सोचे समझे, बुद्धि के प्रयोग के बिना कोई पक्ष ले लेना एक आदत सी बन गयी है. सोशल मीडिया के आने से यह मनोवृत्ति और भी बढ़ती जा रही है. किसी भी मुद्दे को विचाराधीन करने से पहले ही बेबाक हो बयान दे देना या फिर पड़ोस में होने वाली हर अहम् बहस पर भाई-भतीजावाद करने लगना, नागरिकों के लिए अपने ही नुक्सान का कारण बनता जा रहा है. दुःख की बात तो यह भी है की हम इस बात पर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं की किस कदर यह सामाजिक परिस्थिति हमारा अपना बेडा ग़र्क़ कर रही है
जब भी कूड़ा करकट, वायु प्रदूषण, गन्दगी, टूटी सड़क, जाम हुई नालियां या फिर सार्वजनिक भूमि पर अवैध अतिक्रमण की बात सामने आती है तो उसके पीछे बहुत हद तक इस प्रवृति का हाथ होता है
गौर फरमाइए, आपके इलाके में अगर नाली बंद हो जाये तो क्या सब निवासी एक ही आवाज़ में बोलेंगे? या फिर अगर सड़क टूटी हो तो क्या सब एक साथ होकर अपने पार्षद, विधायक और सांसद के पास शिकायत ले कर जायेंगे ? हरगिज़ नहीं। साधारण से साधारण नागरिक भी, बिना वजह पार्टीवाद का हिस्सा बन जायेगा. अगर ऐसा नहीं होता तो आपके इलाके की सड़कें, नालिया, और ढलाव साफ़ होते, और सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा होते ही रोक दिया जाता।
हम अक्सर अपनी विफ़लता को राजनीती बोल, नेता के सर पर मढ़ देते हैं लेकिन ध्यान दीजिये, ये बीमारी तो हमने खुद पाली है.
एक उद्धरण के माध्यम से इस मुसीबत पर प्रकाश डालता हूँ
अभी कुछ ही समय पहले दिल्ली के एक क्षेत्र में शराब की दुकान को लेकर कुछ ऐसा ही हुआ. शुरुआत में ऐसा प्रस्ताव की शराब की दूकान रिहाइशी इलाके में खुलेगी, को लेकर वहां के लोगों ने विरोध करना शुरू किया. लोग सड़क पर उतर आये और जम कर रोष प्रकट करते हुए बोले की वह अपने पड़ोस में शराब का ठेका नहीं खुलने देंगे
फिर क्या था, क्षेत्र के विपक्ष के नेता और निर्वाचित प्रतिनिधि भी मैदान में उतर आये. बस यहां से खेल खराब होना शुरू हुआ और समाज की कमज़ोरी बाहर आ गयी. जहां नेताओं ने क्षेत्र के निवासियों पर एक छोड़ दूसरी या तीसरी पार्टी के मेंबर या अनुगामी होने का इलज़ाम लगाना शुरू किया, वहीँ लोगों में बिना सोचे समझे तरफदारी करना शुरू हो गया . कुछ लोग दुबक गए, कुछ अलग -अलग नेताओं के सामने बोलने में आनाकानी करने लगे, और कुछ चुप-चाप समझाने में लग गए की शराब की दूकान पास ही में हो, तो क्या बुरा है? विरोध अलग थलग हो गया.
सच तो यह है की वोट आप किसे भी दें, पड़ोस शराब की दूकान आपके परिवार पर विपरीत असर डाल सकती है । शराब शरीर में घुस कर तरफदारी तो नहीं करेगी की फलां पार्टी के वोटर को कम चढ़ेगी और फलां पार्टी के वोटर को ज़्यादा। या फिर दुकानदार आपके बच्चे से ये तो नहीं पूंछेगा के ‘बेटा तुम्हारे पिता ने किसको वोट दिया क्योंकि उसी हिसाब से में तुम्हें शराब बेचूंगा या फिर नहीं बेचूंगा।’ जब शराब तरफदारी नहीं करेगी और शराब बेचने वाला नहीं करेगा तो लोग क्यों करने लग गए? क्यों इधर उधर भटक कर एक या फिर दूसरी साइड लेने लगे
ऐसा ही कुछ ट्रैफिक प्लानिंग में दक्षिण दिल्ली की एक अति धनवान कॉलोनी में भी हुआ. अब सब लोग ट्रैफिक में उलझे हैं लेकिन बिना सोचे समझे, ज़िद में, राजनितिक साइड लेते हुए घर फूँक तमाशा देख रहे हैं
URJA में हम अक्सर देखते हैं की पब्लिक और RWA अकसर इस तरह साइड लेने लगते हैं की टूटी सड़क, कूड़ा इत्यादि पर किसी भी तरह का कड़ा रुख अपनाया ही नहीं जा सकता। अफसर भी कुछ यूं सोचते हैं “की लड़ने दो इन लोगों को! और हम फ़ालतू में क्यों चक्कर में पड़ें?”
दिल्ली की बैड गवर्नेंस का यह एक बहुत बड़ा कारण है.
समझदारी तो इसमें है की कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जैसे टूटी सड़कें, बर्बाद फुटपाथ, कूड़े के ढेर, सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा, सिक्योरिटी, बह निकलते हुए हुए सीवर, जिस पर हम, चाहे किसी भी पक्ष को वोट देते हों, उस के नेता या उम्मीदवार से साफ़ साफ़ कह दें, की भाई यह नहीं चलेगा। हम किसी भी पार्टी से सरोकार रखते हों लेकिन दो टूक शब्दों में साफ़ साफ़ नेता से कह देना चाहिए कि ‘वोट की बात रही एक तरफ, लेकिन टूटी सड़क, गन्दगी, मच्छर काटने से बीमारी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। जो राज्य सरकार या निगम का काम है, वह तो एक जुट हो कर मांग लीजिये! इसमें क्यों राजनितिक साइड ले कर एक दुसरे का विरोध?
जनता से अनुरोध है की, समझदारी इसी में है की बिना सोचे समझे, तरफदारी बंद कीजिये। विधायक का चुनाव देश व्यापी मुद्दों से जुड़ा नहीं है. पूर्ण रूप से विधायक को क्यों चुनते हैं, आप सब के विधान सभा क्षेत्र के स्थानीय मुद्दों से जुड़ा है.
आपके इलाके में वैसा शासन है, जैसा आप केअधिकतम क्षेत्रिए निवासी चाहते हैं. जैसी करनी वैसी भरनी; हमारे पूर्वज व्यर्थ ही नहीं कह रहे थे।
Ashutosh Dikshit